10th Hindi Subjective (Short) Question Chapter 7

10th Hindi Subjective (Short) Question Chapter 7

10th Hindi Subjective (Short) Question Chapter 7 Class (क्लास) 10 हिन्दी सब्जेक्टिव क्वेशन चैप्टर 7 कक्षा 10 हिन्दी सब्जेक्टिव अध्याय 7  Matric (मैट्रिक) Subjective Hindi

1. साहित्य का कौन-सा पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है ? इस संबंध में लेखक की राय स्पष्ट करें।

उत्तर—डॉ० रामविलास शर्मा के अनुसार साहित्य मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन से सम्बद्ध है। आर्थिक जीवन के अलावा मनुष्य एक प्राणी के रूप में भी अपना दिन बिताता है। साहित्य में उसकी बहुत-सी आदिम भावनाएँ प्रतिफलित होती हैं। ये भावनाएँ उसे प्राणिमात्र से जोड़ती हैं। डॉ० रामविलास शर्मा के अनुसार साहित्य विचारधारा मात्र नहीं है। इसमें मनुष्य का इन्द्रिय-बोध, उसकी भावनाएँ भी व्यंजित होती हैं। यह साहित्य का स्थायी
पक्ष है।

2. साहित्य की परम्परा का ज्ञान किनके लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है?

उत्तर-जो लोग रूढ़ियों के अनुचर नहीं हैं, उन्हें तोड़कर, क्रांतिकारी साहित्य की रचना करना चाहते हैं तथा साहित्य युग-परिवर्तन की आकांक्षा रखते हैं, उनके लिए साहित्य की परम्परा का ज्ञान सबसे ज्यादा आवश्यक है।

3. परम्परा का ज्ञान किसके लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है और क्यों?

उत्तर_डॉ० रामविलास शर्मा ने अपने निबंध ‘परम्परा का मूल्यांकन’ में समाज, साहित्य और परम्परा के पारस्परिक संबंधों की सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक मीमांसा की है। परम्परा का ज्ञान उन लोगों-लेखकों-चिंतकों के लिए ज्यादा आवश्यक है जो
साहित्य में युग-परिवर्तन करना चाहते हैं। जो लोग लकीर के फकीर नहीं हैं, जो रूढ़ियाँ तोड़कर क्रांतिकारी साहित्य रचना चाहते हैं। उनके लिए साहित्य की परम्परा का ज्ञान सबसे ज्यादा आवश्यक है।

4. परम्परा के मूल्यांकन में साहित्य के वर्गीय आधार का विवेक
लेखक क्यों महत्त्वपूर्ण मानता है?

उत्तर- परम्परा के मूल्यांकन में साहित्य के वर्गीय आधार का विवेक महत्त्वपूर्ण है। साहित्य की परम्परा का मूल्यांकन करते हुए उस साहित्य का मूल्य निर्धारित किया जाता है जो शोषक वर्गों के विरुद्ध श्रमिक जनता के हितों को प्रतिबिम्बित करता है। इसके अतिरिक्त उस साहित्य पर ध्यान दिया जाता है जिसकी रचना का आधार शोषित जनता का श्रम है, जो साहित्य सीधे सम्पत्तिशाली वर्गों की देख-रेख में रचा गया है और उनके वर्ग के हितों को प्रतिबिम्बित करता है, उसे भी परखा जाना चाहिए कि वह अभ्युदयशील वर्ग का साहित्य है या ह्रासमान वर्ग का।
साहित्य में सम्पत्तिशाली और सम्पत्तिहीन वर्ग एक-दूसरे से टकराते हुए दिखाई पड़ना चाहिए।

5. जातीय अस्मिता का लेखक किस प्रसंग में उल्लेख करता है और उसका क्या महत्त्व बताता है?

उत्तर-डॉ० रामविलास शर्मा के अनुसार साहित्य के विकास में जातियों की विशेष भूमिका होती है। यूरोप के सांस्कृतिक विकास में जो भूमिका प्राचीन यूनानियों की है वह अन्य किसी जाति की नहीं है। जनसमुदाय जब एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था में प्रवेश करते हैं तब उनकी अस्मिता नष्ट नहीं हो जाती। मानव समाज बदलता है और अपनी पुरानी परम्परा कायम रखता है। जो तत्त्व मानव समुदाय को एक जाति के रूप में संगठित करते हैं, उनमें
इतिहास और सांस्कृतिक परम्परा के आधार पर निर्मित यह अस्मिता का ज्ञान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

6. बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत से कोई भी देश भारत का मुकाबला क्यों नहीं कर सकता?

उत्तर-डॉ० रामविलास शर्मा के अनुसार संसार का कोई भी देश, बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत से, इतिहास को ध्यान में रखे तो, भारत का मुकाबला नहीं कर सकता। भारत में राष्ट्रीयता एक जाति द्वारा दूसरी जातियों पर राजनीतिक प्रभुत्व कायम करके स्थापित नहीं हुई। वह मुख्यतः संस्कृति और इतिहास की देन है।
इस संस्कृति के निर्माण में इस देश के कवियों का सर्वोच्च स्थान है। क्या कोई भी देश भारत के रामायण और महाभारत का मुकाबला कर सकता है? नहीं।

7. कौन अपने सिद्धांतों को ऐतिहासिक भौतिकवाद के नाम से
पुकारते हैं?

उत्तर-जो लोग वर्गविहीन शोषणमुक्त समाज की रचना कर समाज में मौलिक परिवर्तन की इच्छा रखते हैं, वे ही अपने सिद्धान्तों को ऐतिहासिक भौतिकवाद’ के नाम से पुकारते हैं।

8. लेखक के अनुसार किस बात को बार-बार कहने में हानि नहीं है?

उत्तर-लेखक के अनुसार इस बात को बार-बार कहने में हानि नहीं है कि साहित्य केवल विचारधारा नहीं है, यह विचारधारा के अतिरिक्त मनुष्य के इन्द्रियबोध और उसकी भावना को भी कलात्मकता के साथ अभिव्यक्त करता है।

9. संपत्तिशाली वर्गों की देखरेख में रचे गये साहित्य के संबंध में
लेखक ने क्या कहा?

उत्तर– संपत्तिशाली वर्गों की देखरेख से निर्मित साहित्य के संबंध में लेखक ने कहा है कि ऐसे साहित्य को भी परख कर देखना चाहिए कि यह विकासशील वर्ग का साहित्य है या हासमान वर्ग का।

10. किस तरह समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है? इस प्रसंग में लेखक के विचारों पर प्रकाश डालें।

उत्तर– भारत के लिए समाजवाद राष्ट्रीय आवश्यकता है। पूँजीवादी व्यवस्था में शक्ति का इतना अपव्यय होता है कि उसका कोई हिसाब नहीं है। देश के साधनों का सबसे अच्छा उपयोग समाजवादी व्यवस्था में ही संभव है। अनेक छोटे-बड़े राष्ट्र, जो भारत से ज्यादा पिछड़े हुए थे, समाजवादी व्यवस्था कायम करने के बाद पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा शक्तिशाली हो गए हैं, और उनकी प्रगति की रफ्तार किसी भी पूँजीवादी देश की अपेक्षा तेज है। भारत की राष्ट्रीय क्षमता का पर्ण विकास समाजवादी व्यवस्था में संभव है।

11. साहित्य के निर्माण में प्रतिभा का भूमिका स्वीकार करते हुए
लेखक किन खतरों से आगाह करता है?

उत्तर-डॉ० रामविलास शर्मा के अनुसार साहित्य के निर्माण में प्रतिभाशाली मनुष्यों की भूमिका निर्णायक है। प्रतिभाशाली मनुष्यों की अद्वितीय उपलब्धियों के बाद कुछ नया और उल्लेखनीय करने की सम्भावना बनी रहती है। कला पूर्णतः निर्दोष भी नहीं होती।

12. ‘साहित्य में विकास प्रक्रिया उसी तरह सम्पन्न नहीं होती, जैसे
समाज में’ लेखक का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-डॉ० रामविलास शर्मा के अनुसार साहित्य में विकास प्रक्रिया उसी तरह सम्पन्न नहीं होती जैसे समाज में । सामाजिक विकास-क्रम में सामंती सभ्यता की अपेक्षा पूँजीवादी सभ्यता को
अधिक प्रगतिशील कहा जा सकता है और पूँजीवादी सभ्यता के मुकाबले समाजवादी सभ्यता को। औद्योगिक उत्पादन और कलात्मक सौन्दर्य में बराबर बदलाव आता रहता है।

13. साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन होता है। इस मत को प्रमाणित करने के लिए लेखक ने कौन-से तर्क और प्रमाण उपस्थित किए हैं?

उत्तर– साहित्य निरपेक्ष रूप से स्वाधीन नहीं होता। साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन होता है। साहित्य में सबका हित छिपा होता है। साहित्य से देश जाग उठता है। साहित्य से गुलाम देश की आजादी के लिए करवटें बदलने लगता है। साहित्य स्वाधीनता की प्रेरणा देता है। यह साहित्य की स्वाधीनता पूर्णतः निरपेक्ष नहीं हुआ करती वरन् सापेक्ष होती है।

14. भारत की बहुजातीयता मुख्यतः संस्कृति और इतिहास की देन है, कैसे?

उत्तर– भारत की जातीयता यहाँ रहनेवाली जातियों के मेल से बनी है। यहाँ रहनेवाली जातियाँ एक-दूसरे के विरुद्ध नहीं हैं। यहाँ सर्वधर्म समभाव व्याप्त है। भारत की संस्कृति रामायण और महाभारत से प्रेरणा ग्रहण कर बनी है। भारत की बहुजातीयता और सभी रहनेवाली जातियों में एक-दूसरे के प्रति सम्मान का भाव यहाँ के कवियों ने बनाया है। व्यास और वाल्मीकि ने महाभारत और रामायण लिखा। सभी इन ग्रंथों को पढ़ते और प्रेरित-प्रभावित होते हैं। यह है यहाँ की संस्कृति और यहाँ का इतिहास। ऐसा दूसरे देशों में नहीं पाया जाता। भारत संघ है। यह जातियों का भी संघ है।

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